...

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सीख लिया होगा .......(अतुकांत कविता )

हर स्त्री ,
रूठने के बाद,
मनाई नहीं गई ,
शायद तब उसने सीखा होगा सब्र रखने का हुनर.......

हर स्त्री के,
ज़ख़्मों पर मरहम ,
नहीं लगाया गया होगा,
शायद तब उसने सीखा होगा दर्द को बरदाश्त करने का हुनर ......

हर स्त्री को
नहीं मिल पाया होगा,
बोलने का अधिकार....
या फिर उसे चुप करा दिया गया होगा
कभी संस्कारों, घर की प्रतिष्ठा के नाम पर
तब शायद उसने सीख लिया होगा मौन रहने का हुनर........

हर स्त्री के,
हिस्से में नहीं आई होगी प्रशंसा ..
शायद...