जिंदगी की जंग: अकेलापन के सफर का किस्सा"
जिंदगी की जंग में,
मैंने खुद को अकेला देखा।
पास थे बहुत लोग,
पर साथ देते मैंने किसी को न देखा।
चाहत मुकम्मल न हुई,
मैंने हर जगह खुद को हारते देखा।
टूट गई थी कुछ इस तरह की...
मैंने खुद को अकेला देखा।
पास थे बहुत लोग,
पर साथ देते मैंने किसी को न देखा।
चाहत मुकम्मल न हुई,
मैंने हर जगह खुद को हारते देखा।
टूट गई थी कुछ इस तरह की...