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जिंदगी की जंग: अकेलापन के सफर का किस्सा"
जिंदगी की जंग में,
मैंने खुद को अकेला देखा।
पास थे बहुत लोग,
पर साथ देते मैंने किसी को न देखा।
चाहत मुकम्मल न हुई,
मैंने हर जगह खुद को हारते देखा।
टूट गई थी कुछ इस तरह की रेगिस्तान,
में पानी की बूँद को ढूंढते देखा।
मंज़िल की तलाश में निकली थी,
लेकिन मैंने खुद को रास्ते में गुमराह रहा देखा।
मैंने कुछ लोगों को मेरी कहानी बड़े प्यार से सुनते देखा,
लेकिन कुछ लोगों को मैंने खुद के उपर हँसते देखा।
हां, यह सच है,
कि मैंने जिंदगी की जंग अकेले देखा।
© sttd1
मैंने खुद को अकेला देखा।
पास थे बहुत लोग,
पर साथ देते मैंने किसी को न देखा।
चाहत मुकम्मल न हुई,
मैंने हर जगह खुद को हारते देखा।
टूट गई थी कुछ इस तरह की रेगिस्तान,
में पानी की बूँद को ढूंढते देखा।
मंज़िल की तलाश में निकली थी,
लेकिन मैंने खुद को रास्ते में गुमराह रहा देखा।
मैंने कुछ लोगों को मेरी कहानी बड़े प्यार से सुनते देखा,
लेकिन कुछ लोगों को मैंने खुद के उपर हँसते देखा।
हां, यह सच है,
कि मैंने जिंदगी की जंग अकेले देखा।
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