...

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ख़ामोश पल
दिन भर की दौड़ में,
आगे बढ़ने की होड़ में,
मन कहता है कहीं और चल,
ज़हन ढूंढता है कुछ ख़ामोश पल,
इश्क और माशूक की दुनिया से दूर,
मैं बैठता हूं कहीं थक के चूर,
चंद लम्हे मिलें खुद से मिलने को,
सुकून की दुनिया में हँस के खिलने को,
पर ये ज़िंदगी बेरहम है बड़ी,
हर कदम एक नई जंग है खड़ी,
मैं फिर भी रोज़ मुस्कुराता हूं,
कुछ लम्हे वक्त से ज़रूर चुराता हूं,
पर वो लम्हे काफी कहां,
मैं यहां और दूर सारा जहां,
मैं रोज़ नए नए ख़्वाब जगाता हूं,
एक ख़ामोश पल की आस रोज़ लगाता हूं।
© Musafir