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*** ख्वाब लिखा जाये ***
*** ग़ज़ल ***
*** ख्वाब लिखा जाये ***

" चलो कहीं ये ख्वाब लिखा जाये ,
मुझे मुहब्बत की जरूरत हैं ,
कहीं ये एहसास लिखा जाये ,
करवतो ये शामो की कुछ गुजर जाये ,
फिर उन्हें हम पे जरा प्यार आये ,
जिक्र की नुमाइश छुपाये बैठें हैं ,
जार बेजार ये मुहब्बत कुछ दिलचस्प लिखा जाये ,
चलो कहीं ये ख्वाब लिखा जाये ,
सर्द रातों की तन्हाई मुझपे क्या गुजर रही हैं ,
मिले कहीं ये हसरत फिर ये पुरा कायम हो ,
सहर रचा बसा हैं तेरे आगोश में ,
फिर कहीं मेरी मुहब्बत का कुछ दिलचस्प अंजाम लिखा जाये ,
सिलवते ये चाहतों के कहीं मिटने ना पाये ,
चल कहीं हमारी मुहब्बत का कुछ गहरी अंजाम लिखे ,
रुठ ले मना लुंगा फिर तेरे चाहतों को जार - बेजार लिखा जाये ,
आइने से तकसीम करने बैठ जाता हू
तेरी मुहब्बत का और कौन सा हसीन इल्ज़ाम लिखा जाये . "

‌ --- रबिन्द्र राम


© Rabindra Ram