परम सत्य की ओर
मोह से उत्पन्न आसक्ति से,
श्रेष्ठ है, विरह से व्यापत विरक्ति ।
क्षणिक सुखों को छोड़,
चिरस्थायी आनंद की खोज,
अततः ले जाती हैं, प्रभू सन्मुख की ओर ।
एकांकी मन, संसारिक कर्म,
...........भावशून्य हो,.........
चल पड़ेगें, अततः,
उस परम सत्य की ओर ।
उस परम सत्य की ओर।।
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️ 17 March, 2021
© All Rights Reserved
श्रेष्ठ है, विरह से व्यापत विरक्ति ।
क्षणिक सुखों को छोड़,
चिरस्थायी आनंद की खोज,
अततः ले जाती हैं, प्रभू सन्मुख की ओर ।
एकांकी मन, संसारिक कर्म,
...........भावशून्य हो,.........
चल पड़ेगें, अततः,
उस परम सत्य की ओर ।
उस परम सत्य की ओर।।
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