"बसंत"
अल्हड़-मौजी सच्चे-कच्चे,
पहरों में सिमट न पाऊंगी।
आशीषों से शीष सजें,
देह स्वर्णिम पा जाऊंगी।
क्या होड़ करें चंदा-सूरज,
मैं रुप अनंत सजाऊंगी।
रंगीन चुनर सरसों वाली,
पतंग बन उड़ जाऊंगी।
प्रेमी-दुश्मन सब झूठ बड़े,
मैं अश्वेत 'बसंत' कहलाऊंगी।
© प्रज्ञा वाणी
पहरों में सिमट न पाऊंगी।
आशीषों से शीष सजें,
देह स्वर्णिम पा जाऊंगी।
क्या होड़ करें चंदा-सूरज,
मैं रुप अनंत सजाऊंगी।
रंगीन चुनर सरसों वाली,
पतंग बन उड़ जाऊंगी।
प्रेमी-दुश्मन सब झूठ बड़े,
मैं अश्वेत 'बसंत' कहलाऊंगी।
© प्रज्ञा वाणी