...

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"बसंत"
अल्हड़-मौजी सच्चे-कच्चे,
पहरों में सिमट न पाऊंगी।

आशीषों से शीष सजें,
देह स्वर्णिम पा जाऊंगी।

क्या होड़ करें चंदा-सूरज,
मैं रुप अनंत सजाऊंगी।

रंगीन चुनर सरसों वाली,
पतंग बन उड़ जाऊंगी।

प्रेमी-दुश्मन सब झूठ बड़े,
मैं अश्वेत 'बसंत' कहलाऊंगी।
© प्रज्ञा वाणी