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" रावण एक महाज्ञानी पुरुष "
ब्रह्माण्ड में एक था पुरुष
जो शिव का था परम भक्त
जिसकी कीर्ति थी फैली पूरे विश्व में
शिव जी थे आसक्त उसकी अनन्य भक्ति से।
कहते थे उसको लंकापति
थी प्रजाजन उससे प्रसन्न।
अब कहता हूं उसकी सच्ची कहानी
कहते हैं लोग कि था वो अभिमानी
किन्तु ये सब बातें हैं मनगढ़ंत ज़ुबानी
कोई सामने न था कोई सानी।
जो अपने को मूढ़धन्य समझते हैं
ये बात कहते हैं कि उसने सीता का हरण किया
सच है उसने सीता को हरण किया।
जिसे कहते लोग भगवान राम
उसको वन वन भटकना पड़ा
भय में उसको जीना पड़ा
सुख मिला न उसको कभी संग रह के उनके।
रावण उसको वाटिका में स्थान दिया
उसकी सेवा में दासियों को समर्पित किया
थी न उसको कमी किसी भी वस्तु की,
उसने उसका स्त्री मोह भंग न किया
अपितु उसने उसे सम्मान दिया
अनाचरण उसके मन में कभी न आया।
नारियों का करता था सम्मान बहुत
उसने चौदह वर्ष सुरक्षित रखा,
कष्ट दिया न तनिक भी उसको।
जब पहुंची सीता अयोध्या में
कुछ दिन बाद राम का मन हुआ विचलित
शंका का बीज मस्तिष्क में पनापने लगा,
नारी की पवित्रता का विचार आया
भगवान हो कर स्त्री पर संदेह हुआ।
लिया प्रण अग्नि परीक्षा का
देना होगा प्रमाण तुझको पवित्रता का
वो सीता थी पवित्र रावण की शरण में
ख़ुद का पतिदेव पत्नी पर विश्वास नहीं रहा,
सीता पहले से ही थीं पवित्र।
हाय नारी की ये दशा
तार तार हुई उसकी मनोदशा
स्वयं की पत्नी पर विश्वास नहीं रहा
अंततः सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी।
भगवान होकर भी इक नारी का अंत कराया
अग्नि भी चीख पड़ीं ये दशा देख कर
रावण ने तो खरोच तक नहीं आने दिया।
जो अपनी ही अर्धांगिनी को नहीं जान सका
फ़िर वो भगवान कैसे हो सकता है
ख़ुद अन्तर्यामी कहते हैं
पर अपनी पत्नी के मन को जान न सके
फ़िर वो कैसे अन्तर्यामी हो सकता है।
'Gautam Hritu'
© All Rights Reserved
जो शिव का था परम भक्त
जिसकी कीर्ति थी फैली पूरे विश्व में
शिव जी थे आसक्त उसकी अनन्य भक्ति से।
कहते थे उसको लंकापति
थी प्रजाजन उससे प्रसन्न।
अब कहता हूं उसकी सच्ची कहानी
कहते हैं लोग कि था वो अभिमानी
किन्तु ये सब बातें हैं मनगढ़ंत ज़ुबानी
कोई सामने न था कोई सानी।
जो अपने को मूढ़धन्य समझते हैं
ये बात कहते हैं कि उसने सीता का हरण किया
सच है उसने सीता को हरण किया।
जिसे कहते लोग भगवान राम
उसको वन वन भटकना पड़ा
भय में उसको जीना पड़ा
सुख मिला न उसको कभी संग रह के उनके।
रावण उसको वाटिका में स्थान दिया
उसकी सेवा में दासियों को समर्पित किया
थी न उसको कमी किसी भी वस्तु की,
उसने उसका स्त्री मोह भंग न किया
अपितु उसने उसे सम्मान दिया
अनाचरण उसके मन में कभी न आया।
नारियों का करता था सम्मान बहुत
उसने चौदह वर्ष सुरक्षित रखा,
कष्ट दिया न तनिक भी उसको।
जब पहुंची सीता अयोध्या में
कुछ दिन बाद राम का मन हुआ विचलित
शंका का बीज मस्तिष्क में पनापने लगा,
नारी की पवित्रता का विचार आया
भगवान हो कर स्त्री पर संदेह हुआ।
लिया प्रण अग्नि परीक्षा का
देना होगा प्रमाण तुझको पवित्रता का
वो सीता थी पवित्र रावण की शरण में
ख़ुद का पतिदेव पत्नी पर विश्वास नहीं रहा,
सीता पहले से ही थीं पवित्र।
हाय नारी की ये दशा
तार तार हुई उसकी मनोदशा
स्वयं की पत्नी पर विश्वास नहीं रहा
अंततः सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी।
भगवान होकर भी इक नारी का अंत कराया
अग्नि भी चीख पड़ीं ये दशा देख कर
रावण ने तो खरोच तक नहीं आने दिया।
जो अपनी ही अर्धांगिनी को नहीं जान सका
फ़िर वो भगवान कैसे हो सकता है
ख़ुद अन्तर्यामी कहते हैं
पर अपनी पत्नी के मन को जान न सके
फ़िर वो कैसे अन्तर्यामी हो सकता है।
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