ऐसा क्यों होता है?
कभी-कभी खुद से,
ये पूछना जरूरी हो जाता है,
कि कौन हूं मैं? इस दुनिया से
मेरा क्या नाता है?
ये दुनिया जो इतनी सुंदर
और हसीन दिख रही है,
कौन बनाता है इसे?
और फिर क्यों मिटाता है?
बसंत आने पर खिलते हैं,
नए फूल सभी पेड़ों पर,
पतझड़ आते आते ये सब
क्यों मुरझा जाता है?
फिजाएं हैं बहुत सारी,
नजारे भी है बहुत सारे,
पर कहीं कुछ है जो
अंदर ही अंदर तड़पाता है।
देखता हूं दुनिया को मैं
जब भी अकेला होकर,
क्यों है इतनी भिन्नताएं?
कुछ समझ नहीं...
ये पूछना जरूरी हो जाता है,
कि कौन हूं मैं? इस दुनिया से
मेरा क्या नाता है?
ये दुनिया जो इतनी सुंदर
और हसीन दिख रही है,
कौन बनाता है इसे?
और फिर क्यों मिटाता है?
बसंत आने पर खिलते हैं,
नए फूल सभी पेड़ों पर,
पतझड़ आते आते ये सब
क्यों मुरझा जाता है?
फिजाएं हैं बहुत सारी,
नजारे भी है बहुत सारे,
पर कहीं कुछ है जो
अंदर ही अंदर तड़पाता है।
देखता हूं दुनिया को मैं
जब भी अकेला होकर,
क्यों है इतनी भिन्नताएं?
कुछ समझ नहीं...