...

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अपने हिसाब...
तुम अपने 'हिसाब' से प्यार करते हो मुझे,
और मैं तुम्हारे हिसाब का इंतज़ार करती हूँ।।

मालूम है, मैं शामिल नहीं तेरी ज़रूरतों में,
हाँ! मैं क़ाबिल नहीं जो आऊँ तेरी बातों में।
तुम अपनी 'ज़रूरत' से प्यार करते हो मुझे,
और मैं तुम्हारी ज़रूरत का इंतज़ार करती हूँ।।

अपनों के लिए तो होती ही है फ़ुर्सत अक़्सर,
वक़्त तो ग़ैरों के लिये निकाला जाता अक़्सर।
तुम अपने 'वक़्त' से प्यार करते हो मुझे,
और मैं तुम्हारे वक़्त का इंतज़ार करती हूँ।।
-संगीता पाटीदार

#poem #Poetry