बड़ा विचित्र ये संसार है।
चुन रहा है घर किसी का,
जिसका छत बिना परिवर्तन है।
खाई गहरी है गरीब अमीर की,
बड़ा विचित्र ये संसार है।
कंबल बेच कर कोई,
ठण्ड से मर रहा।
दकए बनाने वाले का भी पेट,
भूख से है जल रहा ।
छपन्न भोग करता...
जिसका छत बिना परिवर्तन है।
खाई गहरी है गरीब अमीर की,
बड़ा विचित्र ये संसार है।
कंबल बेच कर कोई,
ठण्ड से मर रहा।
दकए बनाने वाले का भी पेट,
भूख से है जल रहा ।
छपन्न भोग करता...