...

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दीपोत्सव
कुछ जलाओ दीप तुम,कुछ हम।
जायेगा घुट इस तिमिर का दम।
ज़िन्दगी से भी अंधेरा दूर हो,
ज्योति मन की यदि जला लें हम।
द्वेष सारे क्लेश मिट जाएं,
हो विचारों का अगर संगम।
एक ईश्वर की सभी संतान हैं,
क्यों है अपने बीच फ़िर मतिभ्रम।
सिर्फ़ बोली और भाषा भिन्न है,
एक लय सुर ताल औ सरगम।
हैं सभी खुशियाँ अधूरी सी अगर,
है पड़ोसी को तेरे कुछ ग़म।
उससे बढ़कर क्या ख़ुशी होगी,
काम आ जाएं किसी के हम।

© इन्दु