...

6 views

बागवानी
नहीं मालूम कब शौक बागवानी का पाला मैंने,
और कब खुद को बागबां की सूरत में ढाला मैंने।

तारीख याद नहीं पर लिए थे कभी चार गमले,
उसी दिन से खड़े भी हो गए थे कुछ ‌तो मसले।

मसलों से उलझने की मगर मैंने भी ठान ली थी,
कसकर के कमर अपनी छाती भी तान ली थी

गोबर की खाद में पहली मर्तबा हाथ डाला था,
अब पौधा भी लगाना...