शहरी दृश्य
#शहरीदृश्यकाव्य
रात में दूधिया रोशनी की चकाचौंध,
ऊँची ऊँची बिल्डिंगों की है भरमार,
चारों ओर शहर में भागता आदमी,
फर्राटा मारती हुईं जाती मोटर गाड़ियाँ,
सड़कों पर मचे शोर ही शोर,
कौन है शाहूकार कौन यहाँ चोर,
कोई किसी को जानता ही नहीं,
पड़ोसी पड़ोसी को पहचानता नहीं,
महिलाएं पहने घूम रहीं नकली आभूषण,
कहीं शुद्ध नहीं आक्सीजन इतना है प्रदूषण,
प्यास लगे तो मिलता नहीं शुद्ध जल,
प्राकृतिक वायु कहाँ मिलती यहाँ
जैसे गांवों में बहती है कलकल,
© प्रकाश
रात में दूधिया रोशनी की चकाचौंध,
ऊँची ऊँची बिल्डिंगों की है भरमार,
चारों ओर शहर में भागता आदमी,
फर्राटा मारती हुईं जाती मोटर गाड़ियाँ,
सड़कों पर मचे शोर ही शोर,
कौन है शाहूकार कौन यहाँ चोर,
कोई किसी को जानता ही नहीं,
पड़ोसी पड़ोसी को पहचानता नहीं,
महिलाएं पहने घूम रहीं नकली आभूषण,
कहीं शुद्ध नहीं आक्सीजन इतना है प्रदूषण,
प्यास लगे तो मिलता नहीं शुद्ध जल,
प्राकृतिक वायु कहाँ मिलती यहाँ
जैसे गांवों में बहती है कलकल,
© प्रकाश