मनुष्यों की परीक्षा
तेज़ आंच में तपकर जैसे
रूप निखरता कंचन का,
ज्यों सत्य की छटा दिखाते
बढ़ता सौंदर्य दर्पण का,
कुछ इसी तरह मनुष्यों की भी
नित्य परीक्षा होती है,
क्या जाना, क्या सीखा हमने
यह समीक्षा होती है,
ज्यों-ज्यों पथ की बाधाओं से
अंतर्मन लड़ता जाता है,
समाधान समस्याओं का
सहज ही वह ढूंढ पाता है,
किन्तु समस्या से भाग कर हम
जब छुप जाते हैं किसी कोने में,
मन असक्षम हो जाता है
व्यथा भार को ढोने में,
कर्म करने के भय से जब
आलस्य नाम का लगता दीमक,
प्रयत्न होते जाते कम
बुझ जाता उद्यम का दीपक,
पुनः प्रज्वलित करके दीपक
अपना कर्तव्य निभाएं हम,
कोई समस्या नहीं अकारण
हर उलझन को सुलझाएं हम।
© Anirya
रूप निखरता कंचन का,
ज्यों सत्य की छटा दिखाते
बढ़ता सौंदर्य दर्पण का,
कुछ इसी तरह मनुष्यों की भी
नित्य परीक्षा होती है,
क्या जाना, क्या सीखा हमने
यह समीक्षा होती है,
ज्यों-ज्यों पथ की बाधाओं से
अंतर्मन लड़ता जाता है,
समाधान समस्याओं का
सहज ही वह ढूंढ पाता है,
किन्तु समस्या से भाग कर हम
जब छुप जाते हैं किसी कोने में,
मन असक्षम हो जाता है
व्यथा भार को ढोने में,
कर्म करने के भय से जब
आलस्य नाम का लगता दीमक,
प्रयत्न होते जाते कम
बुझ जाता उद्यम का दीपक,
पुनः प्रज्वलित करके दीपक
अपना कर्तव्य निभाएं हम,
कोई समस्या नहीं अकारण
हर उलझन को सुलझाएं हम।
© Anirya
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