बस्ती
शहर के चकाचौंध में एक बस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते,बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।
एक तरफ़ अंधियारा दूसरी तरफ़ उजाले में बीत रही जिंदगी ऐसी देखी मैंने।
इमारतों पर इमारतें भी देखी और टूटी छत से टपकती बूंदे भी देखी।
शहर के चकाचौंध में एक बस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते,बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।
व़दन पर वस्त्र नहीं बावजूद आँखों में कस्ती ऐसी देखी मैंने।
सर पर छत नहीं बावजूद सपनों का आशियां बुनते देखा मैंने।
शहर के चकाचौंध में एक बस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते, बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।
कुछ नहीं सही फिर भी आँखों में अलग सी चमक देखी मैंने।
उम्मीद के बार - बार टूटने पर अजब़ सी चाहत देखी मैंने।
शहर के चकाचौंध में एक बस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते,बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते,बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।
एक तरफ़ अंधियारा दूसरी तरफ़ उजाले में बीत रही जिंदगी ऐसी देखी मैंने।
इमारतों पर इमारतें भी देखी और टूटी छत से टपकती बूंदे भी देखी।
शहर के चकाचौंध में एक बस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते,बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।
व़दन पर वस्त्र नहीं बावजूद आँखों में कस्ती ऐसी देखी मैंने।
सर पर छत नहीं बावजूद सपनों का आशियां बुनते देखा मैंने।
शहर के चकाचौंध में एक बस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते, बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।
कुछ नहीं सही फिर भी आँखों में अलग सी चमक देखी मैंने।
उम्मीद के बार - बार टूटने पर अजब़ सी चाहत देखी मैंने।
शहर के चकाचौंध में एक बस्ती ऐसी देखी मैंने।
रोते,बिलखते और टूटी हस्ती ऐसी देखी मैंने।