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फक़त
न जिंदो में जिया
ना मैं मुर्दों मैं रहा
मैं बिछड़ के उससे बस ख्वाबों में जिया
ना महफ़िल मैं मिला
न तन्हाई में मिला
मुझे तो वो फक़त सराबों में मिला
न मुलाकातें रास आई
ना ही गुफ्तगू काम आई
मुझे तो बस वो खामोशी में ही मिला
न शफक़तो में दम था
न मोहब्बतों में असर रहा
असर तो बस हमारी अनाओ मे रहा...,,
© Shaesta
ना मैं मुर्दों मैं रहा
मैं बिछड़ के उससे बस ख्वाबों में जिया
ना महफ़िल मैं मिला
न तन्हाई में मिला
मुझे तो वो फक़त सराबों में मिला
न मुलाकातें रास आई
ना ही गुफ्तगू काम आई
मुझे तो बस वो खामोशी में ही मिला
न शफक़तो में दम था
न मोहब्बतों में असर रहा
असर तो बस हमारी अनाओ मे रहा...,,
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