...

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जूठी चाय
" ये खूबसूरती
निचोड़ लो!
इस गुलबदन को
लूट लो!
की पूरी मद हूँ मैं
थोड़ा मर्द बनो
दो चार घुट लो!"

तेरा आकर पास
आँखो में आखें डाल
इस तरह उकसाना
मुझे अब न लुभाने वाला!
तू वापस आयी
पर आयी सिर्फ तू
'हम' न आ सके!
तू गयी छोड़ के जब से
डूबा डूबा और बस डूबा
ये जीवन मेरा तब से!
की जहाँ-जहाँ तू
सज कर बैठती थी
बन 'एक रात की रानी'
लुटा है उन्ही सेजों
घुट घुट कर
तेरा मेरा प्यार!
की ये चीनी
ये दूध
उस पर पड़ी काली पत्तियाँ
और ये गहरी प्याली
मुझे न डगमगाने वाला
वैसे पसंद तो बहुत है मुझे
पर जूठी चाय न भाने वाला!
©prabhat_anand