...

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तू क्यों ना समझे...

बयां कैसे करुँ मैं , हम हैं थोड़े उलझे-उलझे
फना होना चाहूँ तुझमें ,तू क्यों ना समझे.....

रातों की नींद है गायब, नींद भी अब तुझे ढ़ूंढ़ें
अधरों में है नाम तेरे ,रूह में अब तू ही सिमटे
फना होना चाहूँ तुझमें , तू क्यों ना समझे.....

खुला संसार,खुला आसमां ,चलो हम बनें उड़ते परिंदें
करें नादानी, थोड़ी मनमानी,चलो हम एक-दूजे के दिल में बसले
फना होना चाहूँ तुझमें , तू क्यों ना समझे.....


© my feelings