स्त्री को क्या हक़ नहीं??
ना उसे खुद के लिए समय मिलता है,
लेकिन उसी की वज़ह से ये जग मुस्कराता है,
पर उसे ही मुस्कुराने का वक्त नहीं मिलता है,
स्त्री को क्या हक़ नहीं??
ना वो अपनी जिंदगी का कोई फैसला ले सकती है,
हर ग़म को वो दिल में छुपाये रखती है,
बस फर्क इतना है कि सभी उसकी जिंदगी का फैसला ले सकते हैं,
पर वो नहीं,
स्त्री को क्या हक़ नहीं??
सबकी ख़ुशियों का ख़्याल वो रखती है,
जिम्मेदारीयों,और सबके तानों के तले वो धंसती है,
फिर भी वो झूठी हंसी...
लेकिन उसी की वज़ह से ये जग मुस्कराता है,
पर उसे ही मुस्कुराने का वक्त नहीं मिलता है,
स्त्री को क्या हक़ नहीं??
ना वो अपनी जिंदगी का कोई फैसला ले सकती है,
हर ग़म को वो दिल में छुपाये रखती है,
बस फर्क इतना है कि सभी उसकी जिंदगी का फैसला ले सकते हैं,
पर वो नहीं,
स्त्री को क्या हक़ नहीं??
सबकी ख़ुशियों का ख़्याल वो रखती है,
जिम्मेदारीयों,और सबके तानों के तले वो धंसती है,
फिर भी वो झूठी हंसी...