...

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इज़हार न कर सके....
तेरे हिसार से ख़ुद को फ़रार न कर सके
कुछ फ़ासले थे दरम्यां हम पार न कर सके

दिल-शिकन हादसों ने मुझको मायूस किया
अपने दर्द-ए-दिल का भी इज़हार न कर सके

तलाश करती निगाह मिरी इधर-उधर चेहरों में
मंजिल तक जो ले जाती रहगुज़ार न कर सके

कोई आरजू का सितारा चमकता है ख़्वाबों में
तसव्वुर से ख़ुद को हक़ीक़त-निगार न कर सके

जुदाई को मुक़द्दर समझकर जीते रहे दुनिया में
ज़ीस्त के सफ़र में औरों को शुमार न कर सके
----राजीव नयन