...

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ज़िन्दगी
दिल कि एक बात है जो दिमाग़ मे तो है पर लिखावट मे नहीं है ।
ज़ुबान पे तो है पर बातो मे नहीं है ।
मौन हुँ उन सब के लिए जो शायद अब इस दुनिया में नहीं है ।
काट रहे थे जो सज़ा किसी और की ,वो उनका गुनाह नहीं है ।
सुकून ढूंढ़ने हम जाए कहाँ ,शांति तो कहीं भी नहीं है ।
हर वक़्त बस लोगो की चीख पुकार ही गुंज रही है ।
क़ायनात भी दूर से बस तमाशा देख रही है ।
अब कुछ नहीं हो सकता इस दुनिया का शायद यही सोच रही है ।
दो गज़ ज़मीन के लिए हर रोज़ ही युद्ध छिड़ रही है ।
हवस के पुजारियों मे अब तनिक भी शर्म बाकी नहीं है ।
इन्साफ के मोर्चे में जहाँ अब औरते शिकार बन रही है ।
नग्न कर स्त्री को खड़ी दोपहर में,जनता ना जाने किसको शर्मसार कर रही है ।
पर इन सब पर भी सरकार अपनी राजनीती खेल रही है ।
गलती उसकी है तो गलती किसकी है इस पर बहस चल रही है ।
कुदरत भी अपना काम बखूबी कर रही है ।
कहीं है भुसखलन तो कहीं बाढ़ से त्राहि मची है ।
शायद यही है कलयुग का शिखर क्यूंकि अब इससे बुरा और कुछ नहीं है ।
लेकिन फिर भी चलना है, आगे बढ़तेे रहना है, क्यूंकि ज़िंदगी का नाम यही है ।