...

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साये
रात के गहरे वे साये
अब तलक हैं वार करते
गर अशंकित मन न होता
बंद हम क्यों द्वार करते।
कालिमा सायों की धोकर
क्यों न हम उजला बना दें
और हम फिर प्यार से
घर के आलों में सजा लें।
बात एक कौंधी है मन में
अब यही व्यापार करते।