"ख़्वाब जब भी देखा"
एकतरफा रही मोहब्बत मेरी,इज़हार-ए-इश्क़ में डरता रहा..!
किसी और का न हो जाये तू,ये सोच सोच कर मरता रहा..!
ख़्वाब जब भी देखा,तुझसे जुड़ा ख़ुद को ही पाया..!
ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,तेरा नाम भरता रहा..!
क़दम जब भी बढ़ाये मैंने,राह-ए-मोहब्बत पे..!
तस्वीर तेरी तक़दीर मेरी,मुक़द्दर मेरा सँवरता रहा..!
सच है या झूठ न मुझसे तू रूठ,उठती उम्मीदों से मुकरता रहा..!
आईने की मुस्कराहट देख,जैसे हारा इन्सां उभरता रहा..!
तेरा दीदार जब जब हुआ,ख़ुशी के मारे मैं बिखरता रहा..!
इश्क़ है सच्चा मेरा कोई आकर्षण नहीं,तेरी सादगी ही सुंदरता का केंद्र रहा..!
© SHIVA KANT
किसी और का न हो जाये तू,ये सोच सोच कर मरता रहा..!
ख़्वाब जब भी देखा,तुझसे जुड़ा ख़ुद को ही पाया..!
ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में,तेरा नाम भरता रहा..!
क़दम जब भी बढ़ाये मैंने,राह-ए-मोहब्बत पे..!
तस्वीर तेरी तक़दीर मेरी,मुक़द्दर मेरा सँवरता रहा..!
सच है या झूठ न मुझसे तू रूठ,उठती उम्मीदों से मुकरता रहा..!
आईने की मुस्कराहट देख,जैसे हारा इन्सां उभरता रहा..!
तेरा दीदार जब जब हुआ,ख़ुशी के मारे मैं बिखरता रहा..!
इश्क़ है सच्चा मेरा कोई आकर्षण नहीं,तेरी सादगी ही सुंदरता का केंद्र रहा..!
© SHIVA KANT