...

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कुछ पल ठहर जाओ
रूह कि सुकून बनकर
ख्वाबो की ताबीर मे जो तुम आते हो;

जगाकर तलब मिलने की
तसब्बुर् मे कहीं गुम हो जाते हो!

तसब्बुर् की राहे
न जाने आज क्यों नीहार हे!

ख्वाबो की दास्तान
शुरू करने की
आज तमन्ना हे।

आरजू सिर्फ इतना की
हमारी तन्हाई के पलकों मे-
कुछ लम्हें तशरीफ़ रख लेना।।

,𝓟𝓻𝓪𝓴𝓻𝓲𝓽𝓲.