...

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नूर-ए-मोहब्बत की थी
कोई समाँ फिर ऐसा आ गया
आसमाँ को देखने के लिए फिर चाँद आ गया
नूर-ए-मोहब्बत की थी, तारों की जगमगाहट यूँही बदनाम हुए
बेक़रारी तो हीरे के लिए थी, लाखों मोती यूँ नहीं बर्बाद हुए

ढल गया चाँद, अब तो आसमाँ भी अकेला है
लाख तारों के बाद भी आज कितना अँधेरा है
किस्मत का यही दस्तूर था, यूँही लोग देवदास न हुए
चाँद की खोज में, यूँही बिन मौसम बरसात न हुए

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