मैं पानी हूँ
मैं पानी हूं कहीं भी समा जाती हूँ।
किसी की ना होकर भी,
किसी की बन जाती हूँ।
आज़ाद रहना मेरी फितरत है,
मुझे बाँधना भी किसी की नियत है।
पर मैं कोई रूकावट नहीं मानती,
मैं पानी हूं कहीं भी समा जाती हूँ।।
साफ निडर सी रहती हूँ,
बेपरवाह सी खुद पर इतराती हूं।
क्या कहूं हुनर...
किसी की ना होकर भी,
किसी की बन जाती हूँ।
आज़ाद रहना मेरी फितरत है,
मुझे बाँधना भी किसी की नियत है।
पर मैं कोई रूकावट नहीं मानती,
मैं पानी हूं कहीं भी समा जाती हूँ।।
साफ निडर सी रहती हूँ,
बेपरवाह सी खुद पर इतराती हूं।
क्या कहूं हुनर...