पीड़ा
"मन आज फिर व्यथित हो आया,
सोई पीड़ा की जब लगी उठने लहर।
अधरों में वही स्मित सी मुस्कान लिये,
जगना होगा फिर से शाम ओ सहर।।"
अगणित शूल दर्द के से मानों चुभते,
तीक्ष्ण वेदना भी चाहती मुझे हराना,
माना बैठी पीर अभी बिसात बिछाये,
छोड़ दूं भला कैसे फिर भी मुस्कुराना।।
ऋचा(अनुभूतिदिलसे)
© anubhootidilse
सोई पीड़ा की जब लगी उठने लहर।
अधरों में वही स्मित सी मुस्कान लिये,
जगना होगा फिर से शाम ओ सहर।।"
अगणित शूल दर्द के से मानों चुभते,
तीक्ष्ण वेदना भी चाहती मुझे हराना,
माना बैठी पीर अभी बिसात बिछाये,
छोड़ दूं भला कैसे फिर भी मुस्कुराना।।
ऋचा(अनुभूतिदिलसे)
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