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#महक#
#महक#
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कहने को तो शब्द हुं
समझो तो एहसास ।

कहने को तो दिखती नहीं हुं
मेहसूस हो जाऊं करके आंखे बंध।

कहने को तो अपंग हुं
जिसके संग हूं, खींच लु उसे अपनी ओर।

कहने को जुबान से गुंगी हुं
इशारों में खोल दूं मन के भेद।

कहने को बेरंग सी हुं
रंग दूं खुद में सबको, खेलूं ऐसे खेल।

कहने को बिना आग के धुआं सी हुं,
बिखर जाऊं सारा जग महका जाऊं

कहने को तो टिकती नहीं हुं,
छूं लूं किसीको तो पीछा छोड़ती नही

कहने को आसानी से मिलती नहीं हुं,
ढूंढो तो हर पल, हर चीज में हर जगह में मैं ही

कहने को आसानी से बिक जाती हुं,
क्योंकि प्रकृति से जुड़ी, मेरी कीमत दे ना पाए कोई

कहने को मेरा कोई भावना दिखाती नही हुं,
लेकिन फैले महक खुशी की हर कही मेरा स्वभाव यही।










© mehakkhushiki #KRK#