अपने अंजाम से बेखबर जिंदगी
अपने अंजाम से बेखबर जिंदगी
रात दिन कर रही सफर जिंदगी
मूंद कर अपनी पलकों को छुपा लूं तुझको
लग ना जाएं किसी की नजर जिंदगी
आते जाते हुए मंजरों की तरह
घटती जाती है शाम ओ सहर जिंदगी
वक्त गुजरा हुआ फिर नही आएगा
तूने देखा भी मुड़कर अगर जिंदगी
© SYED KHALID QAIS
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