...

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अकेले अकेले
है ज़िन्दगी महफूज़,
इस ग़लतफ़हमी में,
जी रहा था मैं,
अकेले अकेले।

दुनियां को भुला,
लिए जिसके,
गुज़र गया वो,
अकेले अकेले।

रांह होगी आसान,
साथी बनाया उम्मीद से,
कांटो में उलझ गया,
अकेले अकेले।

अपनों संग जिया,
अब तलक मैं भी,
अब खुदको ही खोया,
अकेले अकेले।

उजाला दिया,
अंधेरे को मैंने,
सब कुछ जलाया,
अकेले अकेले।

इश्क़ इबादत,
शौक था मेरा,
तड़पता नफरत में,
अकेले अकेले।

यकीन किया करके,
बंद आंखों को अपने,
नज़ारे भी भींगे,
अकेले अकेले।

आवाज बना उसका,
अल्फ़ाज़ों में बंधकर,
बेजुबां बना,
अकेले अकेले।

जीने मरने की साथ,
खाई थी कसमें,
मौत से मुलाकात होगी,
अकेले अकेले।

है ज़िन्दगी महफूज़,
इस ग़लतफ़हमी में,
जी रहा था मैं,
अकेले अकेले।।