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आदिपुरुष : चित्रण या हरण
लिखी कथा लिखने वालो ने, पता नहीं क्या सोच बूझ कर,
लिख डाली अनबोली बाते, न जाने कहा सुन पढ़कर।
जी हाँ, बात में आदिपुरुष की कर रहा हूँ जिसे आप सभी ने देखा होगा
नहीं भी देगा तो बतला दू खुश किस्मत हो भाई क्यूंकि देखने वालो ने बहुत दुःख है भोगा।
कहने को तो महाकव्य पर चलचित्र बनाने ये सब चल पड़े है,
पर बूझो इन लोगो से आखिर किसकी रामायण ये लोग पढ़ें हैं?
रावण न मानो ये तो चमगादड़ वाहक ही कोई जीव है,
राम-भक्त और श्रीराम का तो रूप ही अजीब है।
राम जी की मर्यादा भंग, लक्ष्मण जी की भाषा भंग,
बजरंगबली श्री हनुमंत की व्यवहार संग वेशभूषा भंग।
मधुर वाणी से बाप-मौसी सी भाषा के शब्द यूँ उपजते हैं।
युद्ध में हनुमान पुष्पक उर्फ़ चमगादड़ से भी लड़ पड़ते हैं।
नहीं, रावण और हिरण्यकश्यपु का भेद ही इन्होने मिटा डाला।
विचित्र स्वरूपी ब्रह्मदेव से हिरण्य का वर रावण को दे डाला।
न दिन में मरे न रात में, न भू में आकाश में, आदि वर के ही भाग थे,
विभीषण के बिन बताये ही श्रीराम ने रावण की नाभि में छोड़े बाण थे
बेचारे मारीच का मुख भयानक राक्षसी दिखला दिया गया
श्री राम के समक्ष लंकेश ने माँ सीता को अगवा किया।
सामने ही जटायु रावण से युद्ध में शहीद हो गए,
क्या केवल सेना लेने राम लखन थे ऋष्यमुक गए।
शबरी तो खुद ही आ पहुंची दोनों वनवासी भाइयों के पास,
अरे वाल्मीकि रामायण का क्यों उड़ा दिया तुमने ऐसा उपगास?
इतना भी ठीक था पर इंद्रजीत ने राम लीला को बन्दर नाच घोषित कर दिया,
रुद्रभक्त महापंडित रावण ने मांस चमगादड़ के मुँह में भर दिया
रावण का दरबार वेल्डिंग फैक्ट्री बना के छोड़ दी,
और सोने की लंका की कहानी लोहे के खहडर सी मरोड़ दी।
समुद्र देव ने नहीं मतलब ऐसे वचन बोल दिए,
प्रभु तुम्हरे नाम के पत्थर मुझमे कभी न डूबेंगे।
रणभूमि में न जाने क्यों रावण ऐसा छल कर बैठा,
सिया रूप में दानव को राम समक्ष भेज ऐंठा।
शुरुआत तो थी और भयानक कंकाल सेना थी आन पड़ी,
कब श्री राम समुद्र में थे लीन, कब लखन जी ने लक्ष्मण रेखा खींच दी?
रणभूमि के युद्धों का ऐसा उलंघना हो गया,
रात्रि में रण शुरू, किसी से कोई लड़ गया।
इस रामायण का प्रयोग सिर्फ नई पीढ़ी को गुमराह करना है
हमें तो बस इस चलचित्र का ये मक़सद ही समझना है।

अब बारी आती है असली रामायण की में बात करूँ,
दोनों के १९-२० के फ़र्क़ का पर्दाफाश करूँ,
मारीच की माया सुन माँ ने लखन जी को भेज दिया,
जाते समय माँ की रक्षा हेतु लक्ष्मण रेखा निर्माण किया।
आया रावण साधू भेष में छल से लंघवा ली लक्ष्मण रेखा,
अपहरण कर ले गया माँ सीता को आस पास किसी ने न देखा
मारीच की मृत्यु के बाद राम लखन कुटिया पहुंचे थे,
परन्तु सीता माता के न होने पर वे उनकी खोज में निकले थे
राह में जटायु उन्हें घायलावस्था में पड़े मिले थे,
रावण माँ सीता को अपहरण कर लंका ले चले थे।
आगे बाद ऋष्यमूक तक दोनों भाई चल पड़े थे,
जहाँ प्रभु भक्ति में लीन हनुमंत उन्हें मिले थे,
मदद करी श्री राम ने मित्र की भांति सुग्रीव की,
शबरी के आश्रम से किष्किंधा की खबर थी श्री राम को मिली।
अब बढे श्री राम वानर सेना लेकर लंका की ओर बढ़ चले,
समुद्र को विनम्र होकर विनती बड़े समय तक करते रहे,
जब न दिया रास्ता समुद्र ने तो वार ज्यों ही ब्रह्मास्त्र से करने लगे,
हाथ जोड़ समुद्र देव समक्ष आ उनके खड़े हुए।
केहन लगे हे प्रभु नल नील को है अभिशाप मिला,
उनका फेका पत्थर भी मुझमे न डूबेगा।
श्री राम नाम लिख पत्थरो से लंका तक सेतु निर्माण कर दिया,
श्री राम ने उत्तर में छोड़ ब्रह्मास्त्र उसका भी सम्मान रख लिया।
विभीषण जुड़े श्री राम से युद्ध में उनका पक्ष लिया,
रावण की मृत्यु का स्वयं वो ही एक कारन बना।
जब दूत बन हनुमंत लंका पहुंचे माँ सिया की खोज में,
आग लगा दी लंका को आग लगी उनकी पूँछ ने।
महासंग्राम प्रारम्भ हुआ और सूर्यास्त तक होता था ख़तम
इंद्रजीत के नागपाश में एक बार लिपटे थे लक्षमण।
संजीवनी ढूंढ़ने फिर निकले हनुमान उत्तर की ओर ,
विनम्र प्रार्थना कर बोले सूर्य से मत होना उदय जब तक न पहुंचू वापस में इस छोर।
और यदि उलंघन मेरी विनती का हे सूर्यदेव आपने कर डाला,
तो फल रूपी सूर्य निगलने वाली याद तो होगी मेरी बाल लीला।
न मिली संजीवनी जब उन्हें तो समूचा पर्वत वे उठा लंका चले,
था उन्हें भरोसा की काल क्या उन्हें छुएगा जो स्वयं नारायण की गोद में है सर रखे।
पहुंचे लंका लछमन जी की मूर्छा को भंग किया,
बची कूची लंका की सेना को भी संपन्न किया।
इंद्रजीत हुआ पराजित, कुम्भकरण अब हमेशा के लिए सो गया,
श्री राम के बाण ने रावण की नाभि का अमृत भी सोख लिया।

ये थी असली रामायण जिसका अजीब सा ही चित्रण हुआ,
जैसे भरी सभा में द्रौपदी नहीं इस महाकाव्य का हरण हुआ।
इसलिए दोबारा में ये बात दोहराता हु .........
इस रामायण का प्रयोग सिर्फ नई पीढ़ी को गुमराह करना है
हमें तो बस इस चलचित्र का ये मक़सद ही समझना है।

© Utkarsh Ahuja