...

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मुझे नहीं पता..
इतना पता है मेरी जान हो तुम
मैं कौन हूँ तुम्हारी मुझे नहीं पता

जानती हूँ कि ये मंज़िल नहीं मेरी फिर
आकर यहाँ क्यूँ रूकी हूँ मुझे नहीं पता

जाने किन ख़यालों में गुम हूँ इन दिनों
जाने क्या-क्या सोचती हूँ मुझे नहीं पता

आवाज़ दी नहीं राहों में तुमने यूँ तो कभी
फिर‌ भी क्यूँ रुक जाती हूँ मैं मुझे नहीं पता

आईने में जो इक शख़्स नज़र‌ आ रहा है
मेरा अक़्स है या साया तेरा मुझे नहीं पता

दिल किस सम्त बहा ले जा रहा है मुझे
ग़मों का दरिया है या इश्क़ मुझे नहीं पता

लोग कहने लगे हैं ये इश्क़ के ईनाम हैं
या है ग़म-ए-जुदाई की सज़ा मुझे नहीं पता

यूँ तो डूब रही हूँ हर‌ रोज़ दरिया-ए-इश्क़ में
फिर जाने क्यूँ दिल जल रहा है मुझे नहीं पता

वो शख़्स जो वजह है मेरे हर‌ दर्द मेरे हर ग़म की
वो ही क्यूँ मेरी मुश्किलों का हल है मुझे नहीं पता