मुझे नहीं पता..
इतना पता है मेरी जान हो तुम
मैं कौन हूँ तुम्हारी मुझे नहीं पता
जानती हूँ कि ये मंज़िल नहीं मेरी फिर
आकर यहाँ क्यूँ रूकी हूँ मुझे नहीं पता
जाने किन ख़यालों में गुम हूँ इन दिनों
जाने क्या-क्या सोचती हूँ मुझे नहीं पता
आवाज़ दी नहीं राहों में तुमने यूँ तो कभी
फिर भी क्यूँ रुक जाती हूँ...
मैं कौन हूँ तुम्हारी मुझे नहीं पता
जानती हूँ कि ये मंज़िल नहीं मेरी फिर
आकर यहाँ क्यूँ रूकी हूँ मुझे नहीं पता
जाने किन ख़यालों में गुम हूँ इन दिनों
जाने क्या-क्या सोचती हूँ मुझे नहीं पता
आवाज़ दी नहीं राहों में तुमने यूँ तो कभी
फिर भी क्यूँ रुक जाती हूँ...