बूढ़े मां- बाप
बुढ़ापे में उनकी लाठी न
बन सका तू,
जिसने उंगली पकड़ कर
चलना सिखाया था।
दो वक़्त की रोटी भी
देता तानो के साथ,
जिन्होंने खुद भूखे
रह कर तुझे भर पेट खिलाया था।
जिसने ज़िदंगी कर दी तुझ
पर न्योछावर,
उन पर तू दिखता है तेवर।
सालो की मेहनत से बनाया जिसने घर,
उन्ही को छोड़ आया तू वृद्धाश्रम।
कभी उनका हाल ना पुछा,
तुझे ख़बर नहीं मगर वो
तुझे अब भी बहुत याद करते है,
जिन्हें तू हमेशा समझता था ओछा।
कुछ पल उन बूढ़े मां बाप के साथ
बिताया भी कर,
बातों ही बातों में उनके संग
मुस्कुराया भी कर।
याद रखना तू भी
बूढ़ा होगा एक दिन,
मिलेगा तुझे तेरे कर्मो
का फल भी एक दिन।
-@Kavyaprahar
बन सका तू,
जिसने उंगली पकड़ कर
चलना सिखाया था।
दो वक़्त की रोटी भी
देता तानो के साथ,
जिन्होंने खुद भूखे
रह कर तुझे भर पेट खिलाया था।
जिसने ज़िदंगी कर दी तुझ
पर न्योछावर,
उन पर तू दिखता है तेवर।
सालो की मेहनत से बनाया जिसने घर,
उन्ही को छोड़ आया तू वृद्धाश्रम।
कभी उनका हाल ना पुछा,
तुझे ख़बर नहीं मगर वो
तुझे अब भी बहुत याद करते है,
जिन्हें तू हमेशा समझता था ओछा।
कुछ पल उन बूढ़े मां बाप के साथ
बिताया भी कर,
बातों ही बातों में उनके संग
मुस्कुराया भी कर।
याद रखना तू भी
बूढ़ा होगा एक दिन,
मिलेगा तुझे तेरे कर्मो
का फल भी एक दिन।
-@Kavyaprahar
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