...

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तितलियाँ उड़ गई रे
बैठी थी छुपकर फूलों में
लगती थी जैसे हो झूलों में
लगती थी परियों के जैसे
लगती थी जैसे वो हॅंसती
मैनें सोचा इसे पकडूं
हाॅंथ बढ़ाया तो
तितलियाँ उड़ गई रे

सुगन्धित फूलों पर बैठती थी
कितनी प्यारी वो लगती थी
नेत्र ने झट से पसन्द किया
मन ने कहा पकडो़ पर इसका
हाँथ बढा़या तो
तितलियाँ उड़ गई रे

हॅंसते...