...

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इंसान
ढूंढ रहा तू पत्थर में भगवान कहां
खुद को साबित करना है आसान कहां

सब कुछ पीछे छूट रहा इंसा टूटा
ठहर गया है जाने ये नादान कहां

बचपन खोया और जवानी रोती है
होठों पर निश्चल सी है मुस्कान कहां

हाय बुढ़ापा रोता जिनका अपनों से
जिंदा तो है पर उनमें है जान कहां

पश्चिम के पीछे ही सारे पागल हैं
कोकिल कंठ सुनाते भारत गान कहां

पैदा तो इंसान हुए थे हम सब ही
पर इंसा बनना भी है आसान कहां

मुमकिन है दुनिया में सब कुछ मिल जाना
मिलना इंसा के जैसा इंसान कहां

© vives