...

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मुट्ठी भर ख़्वाहिश
मुट्ठी भर ख़्वाहिश के लिए कितना भागता है आदमी
चंद सपनों के लिए कितनी बार टूटता है आदमी

सुकूँ के पल खोकर बैचेनी पालता है...