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आग को छोड़ो पानी कहना
दुश्मन को तुम सानी कहना
आग को छोड़ो पानी कहना ।
अय्यारों की बस्ती में यार यहां लूट जाओगे
चंद खनकते सिक्कों में, तुम भी एक दिन बिक जाओगे ।
ताल तलैया को पड़ता है, बंजर में ही मरना
गद्दारों की बस्ती में यार संभल कर चलना ।

घड़ियाली आंसू में मौत यहां पर पलती है
गले लगाने वालों की पीछे से छुरी चलती है।
यौवन को भी अपनी चोली कितनी छोटी लगती है
सांझ सवेरे पनघट पर लज्जा की बोली लगती है।
ऐसी रंग बिरंगी दुनिया की राहों से टलना
गद्दारों की बस्ती में यार संभल कर चलना ।।

बेगाने घर में जो नींद चैन की सोते हैं
जलते घर में हाथ दिए के होते हैं
लकड़ी के गट्ठर को ना कोई हाथ लगाता है
भाई की गर्दन को भाई काट के लाता है
लोहे की भट्टी में सोना बनकर गलना
गद्दारों की बस्ती में यार संभल कर ।।
© मनोज कुमार