"पीहर"
पीहर अपना देखने, गई थी कल मैं गांव।
ना वह तपती धूप थी, ना वो ठंडी छांव।।
ना कोई पनघट मिला, ना कोई पणिहार।
ना कोई युवती मिली, ना कोई लणिहार।2
लालच ने कटवा दिए, सभी बेरियां जांट।
खड़े खेत में देखते, हरदम मेरी बांट। 3
ना पहले सा चाव था, ना पहले सा प्यार।
चाव करनिये...
ना वह तपती धूप थी, ना वो ठंडी छांव।।
ना कोई पनघट मिला, ना कोई पणिहार।
ना कोई युवती मिली, ना कोई लणिहार।2
लालच ने कटवा दिए, सभी बेरियां जांट।
खड़े खेत में देखते, हरदम मेरी बांट। 3
ना पहले सा चाव था, ना पहले सा प्यार।
चाव करनिये...