...

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किस्से मुलाकातों के.....
हम मिले उनसे भीड़ में
अनजानों के बीच में
जिसमें ना दुआ, ना सलाम हुई
फिर भी कई बात हुई
जो उस वक़्त ना उन्होंने सुनी
ना ही हमने सुनी
मन ही मन में बस
एक दूजे के बारे में
हमने खुद से कही ।।

कितना बोलती है ये लड़की
नकचढी कहीं की
घमंड तो देखो
कह तुमने ,
मन ही मन मुझसे झगड़ा
फिर ना देखूँगा शक़्ल इसकी
वादा तुमने खुद से किया
कम तो हम भी ना थे
लंबू , अकडू नाम तो हमने भी
तुम्हें कई दिए थे
शक़्ल से हीरो
तो अक्ल से जीरो के तुम्हें
सम्मान भी दिए थे ।

वो पहली मुलाकात में ही हम
एक दूजे से बिन बात किए
ऐसे बिगड़े थे
कि अपने ही दोस्तों पर हम भड़के
कैसे दोस्त हैं तुम्हारे
कह कमियों के खोल दिए पर्चे ।

तब किसे पता था
इस पहली मुलाकात को याद कर
हम आगे हंसेंगे
जो पीठ दिखा चले गए थे
एक दूसरे को
वो आगे एक दूजे के लिए लडेंगे ।


....... Will continue in 2nd part
© nehaa