...

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सफर में तू साथ हो....
सफर लंबा था
तू संग नहीं थी
कमी तेरी खल रही थी
या यूं कहुँ...
तेरी ना मौजूदगी
दिल को मेरे चुभ रही थी,
बगल की सीट पर
आँखें मेरी
तुझे ढूँढ रही थी
मेरे ख्यालों में बस तू ही
घूम रही थी
या यूं कहुँ...
तू ना होकर भी
दिल में मेरे बसी थी,
संतोष कर लेती मैं
अगर ये जुदाई बस
कुछ घंटों की होती
या यूं कहुँ...
तुझसे जुदाई
किस्मत में मेरे
कुछ पलों की होती,
लगता है खुदा भी
मुझसे रूठा था
जब उसने तुझे
मुझसे छिना था
या यूं कहुँ...
जब उसने मेरी किस्मत में
तेरे बिन जीना लिखा था,
लड़ भी लू अगर मैं अब
ना है वो तुझको
मुझे अब देने वाला
या यूं कहुँ...
जो हो गया
ना है वो अब बदलने वाला,
फिर भी आशा करती हूं
हर सफर में तू साथ हो
हम संग बैठें
हाथो में हाथ हो
या यूं कहुँ...
हर पल तू मेरे
साथ हो।

© Sankranti chauhan