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मन:एक विचलन
मनचला मन अभी भी एक राह खोजे
क्या चाहिए ये बिना सोचे
क्या सही क्या गलत
कुछ ज्ञात नहीं
मन भोला हो हर राह को अपना समझे
जब जीवन ही उसकी पहेली हो
तब क्या और मांगे
भागता अपने हर ख्याल से
पता नहीं क्या हो उसका कल
जो ज्ञान था अब वो भी ड़गमगा रहा
जानो हर बात नयी कहकर
ये मन अपने आप को उसमें ढाल रहा
कुछ ना जानना भी बेहतर होता हैं
क्या अपने आप से दूर भागना ही एक उपाय होता हैं
कुछ किये बिना चला जा रहा है
ये अपने आप को कुछ इस तरह जानना चाहे
जानो खुद से दूर भागने में ही उसको रास्ता नजर आ रहा है
विचलित मन इन विचारो को विचलितता का दोषी ठहराय
अभी भी कुछ जान कर अंजान बैठा
ये मन आज भी डगमगा जाए
क्या ज्ञान भर रखा जिसे ध्यान लाना जरुरी हैं
क्या छोटी सी उम्र में हुई एक एक बात गहरी हैं
विश्वास भी जब नील बन बहे इस तन में
तो कैसे जीव लगे इस राह
मन विचलित हो रहा
बिन जाने कि विचलन की क्या है असली लिबास
© 🍁frame of mìnd🍁
क्या चाहिए ये बिना सोचे
क्या सही क्या गलत
कुछ ज्ञात नहीं
मन भोला हो हर राह को अपना समझे
जब जीवन ही उसकी पहेली हो
तब क्या और मांगे
भागता अपने हर ख्याल से
पता नहीं क्या हो उसका कल
जो ज्ञान था अब वो भी ड़गमगा रहा
जानो हर बात नयी कहकर
ये मन अपने आप को उसमें ढाल रहा
कुछ ना जानना भी बेहतर होता हैं
क्या अपने आप से दूर भागना ही एक उपाय होता हैं
कुछ किये बिना चला जा रहा है
ये अपने आप को कुछ इस तरह जानना चाहे
जानो खुद से दूर भागने में ही उसको रास्ता नजर आ रहा है
विचलित मन इन विचारो को विचलितता का दोषी ठहराय
अभी भी कुछ जान कर अंजान बैठा
ये मन आज भी डगमगा जाए
क्या ज्ञान भर रखा जिसे ध्यान लाना जरुरी हैं
क्या छोटी सी उम्र में हुई एक एक बात गहरी हैं
विश्वास भी जब नील बन बहे इस तन में
तो कैसे जीव लगे इस राह
मन विचलित हो रहा
बिन जाने कि विचलन की क्या है असली लिबास
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