मन:एक विचलन
मनचला मन अभी भी एक राह खोजे
क्या चाहिए ये बिना सोचे
क्या सही क्या गलत
कुछ ज्ञात नहीं
मन भोला हो हर राह को अपना समझे
जब जीवन ही उसकी पहेली हो
तब क्या और मांगे
भागता अपने हर ख्याल से
पता नहीं क्या हो उसका कल
जो ज्ञान था अब वो भी ड़गमगा रहा
जानो हर बात नयी कहकर
ये मन अपने आप को उसमें ढाल रहा
कुछ ना जानना भी बेहतर होता...
क्या चाहिए ये बिना सोचे
क्या सही क्या गलत
कुछ ज्ञात नहीं
मन भोला हो हर राह को अपना समझे
जब जीवन ही उसकी पहेली हो
तब क्या और मांगे
भागता अपने हर ख्याल से
पता नहीं क्या हो उसका कल
जो ज्ञान था अब वो भी ड़गमगा रहा
जानो हर बात नयी कहकर
ये मन अपने आप को उसमें ढाल रहा
कुछ ना जानना भी बेहतर होता...