कुछ सपने.
कुछ सपने देखने लगा है मन,
मगर नहीं मिलता उनको आकार
कभी कभी ये पागल मन,
सोचता है यूँ ही निराधार
कोई अजनबी सा था जो
मगर...
मगर नहीं मिलता उनको आकार
कभी कभी ये पागल मन,
सोचता है यूँ ही निराधार
कोई अजनबी सा था जो
मगर...