...

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साँझ मिलन!!
#सांझ
सांझ को फ़िर निमंत्रण मिला है
दोपहर कल के लिए निकला है
अब उठो तुम है इंतजार किसका
शायद मौसम के बदल जाने का
आए शाम फिर जब मेरी गली
मैं बुलाऊ तुम्हें मेरे हमनवीं
शाम ही साथ तुम हो मेरे
चाँद की भी गुप्तगु साथ हो
रात चलने लगे
बात बनने लगे
ओढ़कर चाँदनी की धवल चादर को
रात तारों की सरगर्मियां जब बढ़ने लगे
कानों में मधुर रस घुलने लगे
तुम चले आओ हवाओं की खुशबू की तरह..
वक्त थम जाए घड़ी रुक जाए
शब्दों की खमोशियाँ अब पिघलने लगी
थी जमी जो वो पिघलने लगी
जबसे चाँद मेरे घर से गुजरने लगा
मौन है मगर बहुत कुछ कह रहा
आँखों में भाव के सागर बह रहा
साँझ को फिर निमंत्रण मिला है
दिन गुजरा है शाम की राह में
फिर से आने का वादा था जो रात का
आ गयी है अपने रफ्तार से
साँझ को भी मिलने की आस है
चाँद के दीदार की प्यास है

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