हे भारती
भारत का इतिहास स्वर्णिम है। ज्ञान के क्षेत्र में पूरा विश्व भारत का ऋणी है।
इसी पर तो विज्ञान का ढांचा टिका हुआ है। भारत का सौंदर्य सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। भारत की विविधता को दर्शाती मेरे प्रथम काव्य संग्रह 'अनछुई पंखुड़ियाँ' से ली गई यह कविता 'हे! भारती'
दसों दिशाओं में गूंज रहा, हे भारती! तेरा गुणगान।
इस सकल विश्व में पोषित, होती एक देव सन्तान।
रजत मुकुट से आच्छादित, मोहनी मूरत तुम्हारी।
उमड़-उमड़ कर सागर लहरें, चरण छुए तुम्हारी।
पक्षी धरणी पर सुरम्य वाद्य, हैं...
इसी पर तो विज्ञान का ढांचा टिका हुआ है। भारत का सौंदर्य सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। भारत की विविधता को दर्शाती मेरे प्रथम काव्य संग्रह 'अनछुई पंखुड़ियाँ' से ली गई यह कविता 'हे! भारती'
दसों दिशाओं में गूंज रहा, हे भारती! तेरा गुणगान।
इस सकल विश्व में पोषित, होती एक देव सन्तान।
रजत मुकुट से आच्छादित, मोहनी मूरत तुम्हारी।
उमड़-उमड़ कर सागर लहरें, चरण छुए तुम्हारी।
पक्षी धरणी पर सुरम्य वाद्य, हैं...