Ek Khawab
Ek Khawab
चीख रही हक़ीक़त मेरी
ख़्वाब की एक आह से
हक़ीक़त इतनी दरवानी होगी
मालूम होता तो जागती न मैं ख़्वाब से
ख़्वाब में देखा न होता उसको
रोज़ जो मिलने आता था
दिल उसकी याद में न रोता
रोज़ जो दिल बहलाता था
बेबस सोऊ बेबस उठू
फिर संभलू या फिर भीखरू
असमंजस में है दुनिया मेरी
हक़ीक़त को समझू या अब मुंह फेरू
© firkiwali
चीख रही हक़ीक़त मेरी
ख़्वाब की एक आह से
हक़ीक़त इतनी दरवानी होगी
मालूम होता तो जागती न मैं ख़्वाब से
ख़्वाब में देखा न होता उसको
रोज़ जो मिलने आता था
दिल उसकी याद में न रोता
रोज़ जो दिल बहलाता था
बेबस सोऊ बेबस उठू
फिर संभलू या फिर भीखरू
असमंजस में है दुनिया मेरी
हक़ीक़त को समझू या अब मुंह फेरू
© firkiwali