...

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बचपन
रात होती थी, बिल्कुल घन्नी अँधेरी "
सन्नाटा...चारों ओर होता था,
थाम लेते थे, माँ को कसकर जब कभी "
चौकीदार के डंडे का शोर होता था,,,,!!!

शक्ल होती थी, बिल्कुल ही मासूमो वाली "
शैतानी में...बड़ा ही नाम होता था,
उसके बाद भी थे, सबके आँखों के तारे "
बचपन का रुतबा ही कुछ और होता था,,,,!!!

जब-जब होती थी, इतवार के दिन छुट्टी "
पूरे इलाके में...घूमकर ही हर खेल होता था,
बीत जाता था, जब पूरा दिन घर से बाहर "
वापस घर जाने का फिर खौफ होता था,,,,!!!

जब कभी आते थे, रिश्तेदार घर पर "
रोकने का उनको...बड़ा ही शौक होता था,
हँसते थे, फिर सब लोग बैठकर साथ में "
उस दिन का मजा ही कुछ ओर होता था,,,,!!!

त्योहारों पर बनते थे, जब भी पकवान "
निगाहों में...फिर कहाँ, कुछ और होता था,
बैठ जाते थे,सभी भाई-बहन रसोई में जाकर "
पकवान मिलने का फिर सबको इंतज़ार होता था,,,,!!!

आँगन में होता था, जब भी चिड़ियों का बसेरा "
उनकी मधुर...आवाज से सवेरा होता था,
उठ जाते थे, सुबह सब भाई बहन साथ में "
बचपन का हर पल बड़ा ही सुहाना होता था,,,,!!!

अनजाने में होती थी, जब गलती कोई "
हर कोई माँ की...पिटाई का शिकार होता था,
देखते थे, रोते हुए फिर एक - दूसरे को "
माँ के प्यार और दुलार का फिर इंतज़ार होता था,,,,!!!

स्कूल से आते थे, जब कभी भी थक हार के "
खाली बिस्तर से... बड़ा ही प्यार होता था,
सो जाते थे, फिर बिस्तर पर बड़ी गहरी नींद में "
उस नींद में एक अलग ही सुकून होता था,,,,!!!

बीत जाता था, जब खेलते हुए पूरा दिन "
फिर पापा के...घर लौटने का इंतज़ार होता था,
आते थे, जब वह शाम को घर वापस "
उनको देख लेने का वह पल बड़ा हसीन होता था,,,,!!!

घर के बाहर आता था, जब कभी मदारी "
देखकर बंदरो को... मन बड़ा खुश होता था,
बजाते थे, ताली बड़े ही झूम-झूम कर "
बचपन में हर कोई मस्त मगन होता था,,,,!!!

बैठ जाते थे, जब दादा जी के पास जाकर "
कहानी सुनने के लिए... फिर दिल बेकरार होता था,
सुनते थे, फिर हमारा बचपन भी क्या बचपन था  "
उनकी कहानी का भी तो यही नाम होता था,,,,!!!