...

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*** मौजूदगी ***
*** कविता ***
*** मौजूदगी ***

" कुछ सच बताऊं तो
मैं तूझे कुछ कुछ जान ने लगा हु ,
मैं तेरी चोर नज़र को ,
अब मैं थोड़ा थोड़ा पहचाने लगा हु ,
हो रही तेरी आदतें मसगुल ,
जिस तरह मैं तेरी तरफ रजामंद हु ,
मेरे तहरीर पे पन्ने ,
कोरे कागज कुछ और रंगीन हो ,
तेरे जिक्र की नुमाइश ,
क्या - क्या कहने भिड़ में पहचाने लगी है ,
कुछ मुहब्बत हो कि ,
अब‌ तेरी - मेरी कुछ बात बन‌ रही है ,
रहना ना‌ रहना अब ,
ये खामोशी भी तेरी बज़्म की परछाईं ,
छेड़ के तेरी बातों को ,
अब खुद में तेरी तलाश जारी हैं ,
रुख अब किस ओर करें ,
जहां भी चले अब तेरी मौजूदगी शामिल हैं‌ ,


--- रबिन्द्र राम
© Rabindra Ram