गज़ल
यह कह दें वे इतराती फ़िज़ाओं से
दिल बहलने लगा है मेरा खिज़ाओं से
क़त्ल करते हैं, करते होंगे वो निगाहों से
उनकी ज़िन्दगी मांगते हैं हम दुआओं से
माना की मैं नज़र चुराता हूँ वफाओं से
फिर भी मुमकिन है यारी न हो जफ़ाओं से
जाने किस सेहरा में तब्दील होगी हयात
ऊबने जो लग गया हूँ आखिर अदाओं से
अरसे से मोहतरमा ने हमें याद नहीं किया
पाला नहीं पड़ता होगा अब बलाओं से
© AbhinavUpadhyayPoet
दिल बहलने लगा है मेरा खिज़ाओं से
क़त्ल करते हैं, करते होंगे वो निगाहों से
उनकी ज़िन्दगी मांगते हैं हम दुआओं से
माना की मैं नज़र चुराता हूँ वफाओं से
फिर भी मुमकिन है यारी न हो जफ़ाओं से
जाने किस सेहरा में तब्दील होगी हयात
ऊबने जो लग गया हूँ आखिर अदाओं से
अरसे से मोहतरमा ने हमें याद नहीं किया
पाला नहीं पड़ता होगा अब बलाओं से
© AbhinavUpadhyayPoet