...

5 views

आत्म~मंथन
जाना था किस ओर, अब ना जाने किस दिशा में बढ़ रहा हूं मैं,
ख़ुद की क़िस्मत बदलनी थी, अब हाथों की लकीरें को देख हंस रहा हूं मैं,
सबकी कहीं बातों से भिड़ा था, अब खुद से ही लड़ रहा हूं मैं,
हासिल़ तो कुछ किया नहीं, पर अब क्या खोने से डर रहा हूं मैं,
जिंदा तो हूं धड़कनों से, पर लगता है जैसे अंदर से मर रहा हूं मैं,
दोस्त चाहें अब दुश्मन बने, पर उन्हें अब मनाना छोड़ रहा हूं मैं,
होकर रूबरू हकीकत से, अब गलतियां दोहरा नहीं रहा हूं मैं,
मुझसे जुड़ी अफवाहों पर अब दलीलें पेश करना छोड़ रहा हूं मैं,
ख़ुद से ज्यादा यकीन था जिनपर, उनकी हक़ीक़त से वाकिफ़ हो चुका हूं मैं,
वो सोच रहे हैैं रजत हार मान रहा है, उनसे कहो खुद को भीड़ से अलग बांट रहा हूं मैं,
लोग सुननें को हो तैयार, मेरे कहें और लिखें हर लफ़्ज़ को बस इसलिए खुद को बुलंद कर रहा हूं मैं,
जाना था किस ओर, अब ना जाने किस दिशा में बढ़ रहा हूं मै...!
© Rajat