शाम....
याद है मुझे वो पल
जब तू मेरे साथ थी
मेरे हातोमे तेरा हात था
और ऐसीही ढलती शाम थी
ना किसीका डर ना जमाने कि पर्वा थी
मेरे खंदे पे सर रखकर अराम से तू बैठी थी...
जब तू मेरे साथ थी
मेरे हातोमे तेरा हात था
और ऐसीही ढलती शाम थी
ना किसीका डर ना जमाने कि पर्वा थी
मेरे खंदे पे सर रखकर अराम से तू बैठी थी...
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